रविवार, 21 मार्च 2021

WHAT IS SPACE HURRICANE IN HINDI EXPLAINED ( स्पेस हुर्रिकेन क्या होता है ? )


स्पेस हुर्रिकेन क्या होता है ( WHAT IS SPACE HURRICANE )



स्पेस हुर्रिकेन के बारे मे( ABOUT SPACE HURRICANE ) :-


स्पेस हर्रिकेन के बारे मे हाल ही जानकारी सांझा की गई है चीन के शेंडोंग युनिवर्सिटी के द्वारा जहाँ उन्होने ने बताया की पृथ्वी की आकाशीय परत मे एक चक्रवात आया था जिसे इन्होने देखा और इसका अवलोकन किया था। यह चक्रवात सन अगस्त,2014 मे देखा गया था और इसकी जानकारी अब जा के सांझा की गई है और उन्होने यह भी बताया की यह पृथ्वी के वायुमंडल मे लगभग 8 घंटे तक रहा था और यह पृथ्वी पर आनेवाले चक्रवातो की तरह ही था लेकिन जब उन्होने इसका अवलोकन किया तब पाया की पृथ्वी पर आनेवाले चक्रवातो के बिल्कुल विपरीत था और ऐसा ही चक्रवात हमने कई ग्रहो पर देखा है जैसे की शुक्र(बृहस्पति) ग्रह। स्पेस हुर्रिकेन पृथ्वी की सतह से लगभग 200 किलोमीटर ऊपर आया था और उस समय इसका अवलोकन चार सेटेलाईटो की सहायता से किया गया था और वह सेटेलाईट चीन,अमेरिका,नोर्वे अथवा युनाइटेड किंगडम इन चार देशो के थे। स्पेस हुर्रिकेन मे प्लाज्मा की गति 7000-8000 किलोमीटर पर घंटे की नापी गई थी और यह जब आरम्भ होता है तब इसमे से एलेक्ट्रोन तत्व गिरते है तथा वायुमंडल मे बह्त तेज गति से ऊर्जा बदलती है और स्पेस हुर्रिकेन का निर्माण बिल्कुल ही शांत वायुमंडल मे होता है यह भी पाया गया। स्पेस हुर्रिकेन क्या-क्या हानि पहुंचा सकता है इसपर अभी शोध चल रहा है लेकिन वैज्ञानिको का मानना है की इसका प्रभाव जीपीएस और रेडियो तरंगो पर पड सकता है।





अधिक जानकारी (MORE INFORMATION) :- स्पेस हुरीकेन पर अभी पुरी तरह और हर प्रकार से पुर्ण शोध नही हुआ जिसके कारण हमने कई बाते नही बताई है क्योंकी वह बाते स्थाई/पुष्टी नही है।

बुधवार, 17 मार्च 2021

WHAT IS SERUM (सीरम क्या होता है) - IN HINDI


सीरम क्या होता है( WHAT IS SERUM)



सीरम के बारे मे (ABOUT SERUM) :-


सीरम एक प्रकार का द्रव्य पदार्थ होता है जिसे रक्त से ही तैयार किया जाता है। इसे मानवो अथवा जीवों को लगाया जाता है ताकी वह ग्रसित बीमारी या रोग से ठीक हो सके। इसका उपयोग रोगों से तुरंत ठीक होने के लिए किया जाता है। सीरम यह भिन्न - भिन्न रोगों के अनुसार बनाई जाती है और इसमे बहुत से प्रकार बनाए जाते है इसका उपयोग अधिकतर नई दवाइयों को प्रयोग करने के लिए किया जाता है जहाँ इसकी सहायता से से मानवो पर प्रयोग किया जाता है। इसे रक्त में प्रभावित किया जाता है सुई के माध्यम से। सीरम के बहुत से प्रकार है और उन्हीं के अनुसार भिन्न-भिन्न कार्यो के लिए उपयोग किया जाता है।





रविवार, 22 नवंबर 2020

विश्व का सबसे काला रंग "वेंटाब्लैक" (WHAT IS VANTABLACK IN HINDI) (DARKEST MATERIAL) - UNIQUE HINDI POST


वेटाब्लैक क्या होता है ? ( WHAT IS VANTABLACK ? )



वेंटाब्लैक के बारे मे (ABOUT VANTABLACK) :-


वेंटाब्लैक यह एक नया रंग का नाम है जो की इस धरती का सबसे काला रंग है जिसका नाम वेंटाब्लैक रखा गया है। यह पृथ्वी स्थित सबसे काले पदार्थो मे से एक है यह इतना काला है की इसपर यदी प्रकाश पडता है तो यह प्रकाश को भी 99.965% अपने अंदर समाहित कर लेता है इसपर प्रकाश का परावर्तन नही हो पाता है। वेंटाब्लैक को हाल ही के कुछ वर्षो मे निर्माण किया गया है सर्रे नॅनोसिस्टम(SURREY NANOSYSTEMS) के द्वारा जो की युनाइटेड किंगडम(UK/UNITEDKINGDOM) मे स्थित है। इसका पुरा नाम वर्टीकली अलाईंड नॅनोट्युब अ‍ॅरे(VARTICALLY ALIGNED NANOTUBE ARRAYS) है और ब्लैक(BLACK.काला) अंतिम नाम इसे इसके काले रंग के कारण दिया गया है। वेंटाब्लैक कि सतह पर खडी ट्युबो का जंगल-सा बना हुआ होता है जिसके कारण प्रकाश इसपर पडते ही वह इनमे से निकल नही पाता जिसके कारण प्रकाश प्रतिबिंबित नही हो पाता जिसके कारण बाद मे यह गर्मी के रुप परिवर्तित होकर निकल जाता है। वेंटाब्लैक यह वर्तमान समय मे सामान्य स्तर पर उपलब्ध नही है यह इस केवल विशेष कार्यो के लिए उपयोग मे दिया जा रहा है।





मंगलवार, 17 नवंबर 2020

घोडे के किडे के बारे मे जानकारी ( HORSEHAIR WORM / NEMATOMORPHA IN HINDI ) - UNIQUE HINDI POST


घोडे का किडा ( HORSEHAIR WORM )



घोडे के किडे के बारे मे (ABOUT HORSEHAIR WORM) :-


सबसे पहले इसके नाम के बारे मे आपको बताते है की इसका नाम कैसे पडा दरअसल यह एक धारणा थी लोगो मे की यह किडा तब जन्म लेता है जब पानी घोडे की पुछ से होकर जाता है और उसी पानी से यह किडा जन्मता है लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नही है इसका वैज्ञानिक नाम "नेमाटोमोर्फा(NEMATOMORPHA)" है और यह अधिकतर पानी मे ही पाया जाता है क्योंकी यह किडे नमीवाले क्षेत्रो मे पनपते है इसलिए यह वही पाए जाते है अधिकतर जैसे की यह समुद्र के किनारे या किसी तालाब अथवा झील मे भी पाए जाते है इसके उपरांत यह किडे साफ पानी मे ही पाए जाते है तो यह बात ध्यान मे रखिए अगर यह किडे किसी पानी मे पाए जाते है तो समझिए वह पानी साफ है। यह किडे परजीवी भी होते है इसका अर्थ यह किसी दुसरे के शरीर को अपना भोजन बनाते है जैसे की तिलचट्टे,तितली आदि जिनके शरीर मे रहकर यह किडा उन्हे अंदर ही अंदर से खाता है और कमजोर करता जाता है और एक समय ऐसा आता है जब यह किडा व्यस्क हो जाता है और इसका आकार बढने लगता है तब यह उस जीव के शरीर को फाडकर अथवा कमजोर करके मारने के बाद बाहर निकलता है जिसके बारे आपको सोशल मिडियापर बहुत से विडियो मिल जाएंगे तो अब प्र्श्न आता है की यह किडा उनके अंदर कैसे जाता है तो इसका साफ-सा उत्तर है की यह किडा दुसरे जीव के शरीर मे अंडे के रुप मे जाता है अथवा यह उसके अंदर तब पहुंचता है जब वह अपने प्राथमिक स्तर पर होता है जब कोई जीव पानी पीता है तब यह किडा उसी समय उस जीव के अंदर प्रवेश करता है और धीरे-धीरे उसके अंदर पनपता है। इनका आकार 2 इंच से लेकर 4 इंच तक होता है और कई जगहो पर जब यह चरम पर होता है तो इसकी लंबाई 2 मीटर तक भी हो जाती है लेकिन 2-4 इंच लंबाई यह सामान्य आकार होता है और इन्हे व्यस्क होने मे कई हफ्तो तथा महीनो का समय लग जाता है। इनमे नर और मादा की प्रजातिया होती है।

कितना घातक है यह किडा मानवो के लिए ? (HOW MUCH DANGER IS HORSEHAIR WORM FOR HUMANS)


हम आपको बता दे की यह किडा मानवो के लिए घातक नही है यह सिर्फ और छोटे प्राणियो जैसे की तिलचट्टो जैसे जीवो के लिए बहुत घातक है यह उनके लिए बहुत दर्दनाक मृत्यु होती है लेकिन इनका मानवो और बडे जानवरो पर कोई असर नही होता यह मानवो और बडे जानवरो के अंदर नही पनप पाते तो इससे भयभीत होने की बात नही है।


अधिक जानकारी (MORE INFORMATION) :- इस किडे के बारे मे बहुत से लोगो को पता नही है जिसके कारण लोग सोशल मिडिया पर इस किडे के विडियो को कुछ भी बताने की कोशिश करते है भारत(INDIA) मे हाल ही के कुछ हफ्तो पहले इसका एक विडियो बहुत चर्चा मे आया था जहाँ इसे शिवनाग वृक्ष(SHIVNAAG VRUKSH) की जडे बताई जा रही थी और कहा जा रहा था की यह शिवनाग वृक्ष की जडे है जो काटने के बाद से 4 से 15 दिनो तक तडपती रहती है हम आपको कुछ विडियो की लिंक भी बता देते है जो की युटूब की है और हम आपको यह बता देना चाहते है की इस विडियो मे जो वस्तु हिल-डुल रही है वह "नेमाटोमोर्फा" नामक किडा अथवा घोडे का किडा(HORSEHAIR WORM) है और हम आपको इसके लिए जागरुक करते है।

सोमवार, 19 अक्टूबर 2020

WHAT IS NARCO TEST AND WHEN THIS DO IT ( नार्को टेस्ट क्या होता है और इसे कब किया जाता है ) IN HINDI - UNIQUE HINDI POST


नार्को टेस्ट क्या होता है ( WHAT IS NARCO TEST )



नार्को टेस्ट के बारे ( ABOUT NARCO TEST ) :-


नार्को टेस्ट यह एक प्रक्रिया है जिसमे किसी व्यक्ति से सच उगलवाने के लिए उसे एक औषधिय सुई अथवा इंजेक्शन दिया जाता है जिससे वह आधा होश मे और आधा बेहोश होता है जिसके कारण वह व्यक्ति सच उगलने लगता है। सुई मे जिस औषधि का उपयोग किया जाता है उस औषधि का नाम "सोडियम पेंटोथल" है जिसके कारण वह सम्मोहित हो जाता है इस औषधि को कभी-कभी "ट्रुथ सिरम" भी कहा जाता है इसका उपयोग द्वितीय विश्व युद्ध मे बहुत होता था और यह उस समय बहुत प्रचलित भी था यदि इसे अधिक मात्रा मे दिया जाए तो यह उस अंग को सन्न भी कर सकता है और ऐसा करने के लिए कभी-कभी इसका उपयोग भी किया जाता रहा है।

नार्को टेस्ट कब किया जाता है ( WHEN NARCO TEST APPLY )


नार्को टेस्ट का उपयोग तब किया जाता जब किसी व्यक्ति पर गंभीर आरोप लगे हो और वह दोषी हो लेकिन वह सच नही बताता तब नार्को टेस्ट का उपयोग किया जाता है। नार्को टेस्ट जिसका करना है उसके लिए उसकी इच्छा होनी चाहिए तब ही नार्को टेस्ट किया जाता है अथवा नार्को टेस्ट जिसपर किया जा रहा है उसकी अनुमति होनी आवश्यक है अन्यथा यदि उसकी अनुमति नही है तो कोई भी उसका नार्को टेस्ट नही कर सकता यदि किसी ने ऐसा किया तो उसपर कानूनी कारवाई की जाती है। अनुमति इसलिए ली जाती है क्योंकी सभी को बोलने का अधिकार है जो की मुलभूत अधिकारो मे से एक है और यदि नार्को टेस्ट बिना अनुमति के किया गया तो इसे मुलभूत अधिकारो का हनन कहा जाएगा जिसपर कानूनी कारवाई की जाती है।


सोमवार, 17 अगस्त 2020

शाकाहारी या मांसाहारी इनमे से क्या है मानव जाति ? ( VEGETARIAN OR NON-VEGETARIAN WHICH OF FOLLOWING IS MANKIND ? ) - UNIQUE HINDI POST


शाकाहारी या मांसाहारी इनमे से क्या है मानव जाति ? ( VEGETARIAN OR NON-VEGETARIAN WHICH OF FOLLOWING IS MANKIND ? )



मनुष्य शाकाहारी है या मांसाहारी ( IS MAN A VEGETARIAN OR A NON-VEGETARIAN )


जब भी यह प्रश्न किसी व्यक्ति को आता है तो वह बहुत सोच मे पड जाता है की मानव जाति शाकाहारी है या मांसाहारी और वह इसका उत्तर खोजने लग जाता है लेकिन जब वह इसे खोजता है इंटरनेट पर तो उसे मिश्रित लेख मिलते है जैसे की कुछ लेख मे लिखा होता है की अथवा कई लोग कहते है की मानव जाति मांसाहारी है क्योंकी उसके नुकिले दांत है और मांसाहारी प्राणियो के दांत नुकिले होते है क्योंकि उन्हे मांस को फाडकर खाना पडता है इसलिए और कही-कही आपको यह बताया जाता है की मानवो मे शाकाहार और मांसाहार करनेपर दोनो मे अंतर बताया जाता है जिसमे बताया गया होता है की शाकाहार खानेपर मानवो को बिमारिया आदि कम होती है और मांसाहारा करनेपर मानव को कई बिमारियो का खतरा बन जाता है

लेकिन हम आपको इसके बारे मे बाद मे बताएंगे की शाकाहार करनेवाले मानवो के शरीर और मांसाहार करनेवाले मे से कौन सबसे श्रेष्ठ होता है और किसका आहार करना श्रेष्ठ होता है यह बाते हम आपको अगले लेख मे बताएंगे। आज हम आपको बताएंगे की मानव शाकाहारी है या मांसाहारी तो इसे जानने का एक सर्वोत्तम उपाय शरीर की बनावट है क्योंकी शाकाहारी प्राणियो की बनावट अलग होती है और मांसाहार करनेवाले प्राणियो की बनावट अलग होती है इसके लिए हम आपको नीचे एक तालिका दे रहे है जिसमे शाकाहारी प्राणियो की बनावट और मांसाहारी प्राणियो की बनावट के बारे मे अंतर स्पष्ट किया गया है :-

शाकाहारी और मांसाहारी प्राणियो के बनावट अथवा दोनो मे अंतर स्पष्ट की गई तालिका :-



क्रमांक

शाकाहारी प्राणियो की बनावट

मांसाहारी प्राणियो की बनावट

1

आंखे लम्बी होती है, अंधेरे मे चमकती नही और अंधेरे मे देख नही सकती अथवा जन्म के साथ ही खुलती है।

आंखे गोल होती है, अंधेरे मे देख सकती है और अंधेरे मे चमकती है अथवा जन्म के 5-6 दिन बाद खुलती है।

2

सूंघने की शक्ति कम होती है मांसाहारियो के मुकाबले

सूंघने की शक्ति बहुत अधिक होती है

3

बहुत अधिक आवृत्तिवाली आवाज को नही सुन पाते है।

बहुत अधिक आवृत्तिवाली आवाज को सुन लेते है।

4

दांत और दाढ दोनो होते है, चपटे होते है अथवा एकबार गिर जाने के बाद दोबारा आते है।

दांत नुकीले होते है। सारे मुह मे दांत ही होते है अथवा एकबार ही आते है।

5

ये भोजन को पीसते है, तो इसलिए इनका जबडा ऊपर-नीचे अथवा दाए-बाए भी चलता है।

मांस को फाडकर निगलते है इसलिए इनका जबडा ऊपर-नीचे चलता है।

6

भोजन करते समय एकबार भोजन मुह मे लेने के बाद निगलने तक मुह बंद रखते है।

मांस खाते समय बार-बार मुह को खोलते एंव बंद करते है।

7

जीभ आगे से चौडाई मे कम होती है तथा गोलाईदार होती है।

जीभ आगे से चपटी व पतली होती है और आगे से चौडी होती है।

8

शाकाहारी जीवो की जीभपर टेस्ट बड्ज(Taste Buids) की संख्या अधिक होती है(20.000-30,000 की संख्या मे) मनुष्यो की जीभपर इसकी संख्या 24,000-25,000 तक होती है।

मांसाहारी जीवो की जीभपर टेस्ट बड्ज(Taste Buids) कम होते है(500-2000 की संख्या मे) इसकी सहायता से स्वाद का पहचान की जाती है।

9

मुह की लार क्षारीय(ALKALINE) होती है।

मुह की लार अम्लीय(ACIDIC) होती है।

10

पेट की बनावट बहुकक्षीय होती है। मनुष्य का पेट दो कक्षीय होता है।

पेट की बनावट एक कक्षीय होती है।

11

पाचन संस्थान(मुह से गुदा तक की) की लम्बाई अधिक होती है सामान्यत: शरीर की लम्बाई से 5-6 गुणा होती है।

मांसाहारी प्राणियो के पाचन संस्थान(मुह से गुदा तक की) की लम्बाई कम होती है सामान्यत: शरिर की लम्बाई का 2-3 गुणा होती है।

12

शाकाहारी प्राणियो के पेट के पाचक रस मांसाहारीयो के अंतर मे बहुत कम तेज होते है तथा मानवो के पेट के पाचक रसो की सांद्रता शाकाहारियोवाली होती है।

मांसाहारी प्राणियो के पेट के पाचक रस(सांद्र) बहुत तेज होते है शाकाहारियो के मुकाबले इनके पाचक रस 12-15 गुणा ज्यादा तेज होते है।

13

छोटी आंत चौडाई मे काफी कम और लम्बाई मे बडी आंत से काफी ज्यादा लम्बी होती है।

मांसाहारी प्राणियो मे छोटी आंत एंव बडी आंत की लम्बाई-चौडाई मे अधिक अंतर नही होता।

14

शाकाहारी प्राणियो मे किण्वन बैक्टीरिया(Fermentation Bacteria) होते है, जो कार्बोहाईड्रेट के पाचन मे सहायक होते है।

मांसाहारी प्राणियो मे कार्बोहाईड्रेट नही होता,इस कारण मांसाहारीयो की आंतो मे किण्वन बैक्टीरिया नही होते है।

15

आंतो मे उभार व गड्डे(Grooves) अर्थात अंदर की बनावट चूडीदार होती है।

आंते पाईपनुमा होती है अर्थात अंदर से सपाट होती है।

16

शाकाहारीयो के लीवर के पाचक रस मे वसा को पचानेवाले पाचक रस की न्युनता होती है, पित को छोडता है तथा तुलनात्मक आधार मे छोटा होता है।

इनका लीवर वसा और प्रोटीन को पचानेवाला पाचक रस अधिक छोडता है, पित को जमा करता है अथवा आकार मे बडा होता है।

17

शाकाहारी प्राणि मांसाहारीयो के मुकाबले अग्राशय अधिक मात्रा मे एंजाईम छोड्ता है।

इनका अग्राशय कम मात्रा मे इंजाईम छोडता है।

18

खून की प्रकृति क्षारीय(ALKALINE) होती है।

खुन की प्रकृति अम्लीय(ACIDIC) होती है।

19

आंतो मे उभार व गड्डे(Grooves) अर्थात अंदर की बनावट चूडीदार होती है।

आंते पाईपनुमा होती है अर्थात अंदर से सपाट होती है।

20

शाकाहारीयो मे गुर्दे(Kidney) मांसाहारीयो की तुलना मे छोटे होते है।

प्रोटिन के पाचन से काफी मात्रा मे युरिया व युरिक अम्ल बनता है जिसे रक्त से काफी मात्रा मे यूरिया आदि को हटाने के लिए बडे आकार के गुर्दे होते है।

21

शाकाहारीयो मे गुदा के ऊपर का भाग रेक्टम होता है।

इनमे रेक्टम नही होता है।

22

शाकाहारी प्राणियो की पीठ पर भार ढो सकते है।

इनकी रिढ की बनावट ऐसी होती है की पीठ पर भार नही ढो सकते।

23

शाकाहारीयो के नाखून चपटे और छोटे होते है।

इनके नाखून आगे से नुकिले गोल और लम्बे होते है।

24

शाकाहारी प्राणि तरल पदार्थ को घुंट-घुंट कर पीते है।

ये तरल पदार्थ को चाटकर पीते है।

25

शाकाहारीयो को पसीना आता है।

इन्हे कोई पसीना नही आता है।

26

शाकाहारी प्राणियो की बच्चे को जन्म देने का समय 6-18 महिने तक का होता है।

मांसाहारी प्राणि 3-6 महिने मे बच्चे को जन्म दे देते है।

27

ये पानी अपेक्षाकृत ज्यादा पीते है।

ये पानी कम पीते है।

28

शाकाहारीयो श्वास लेने की प्रक्रिया धीमी होती है तथा आयु अधिक होती है।

इनमे श्वास लेने प्रक्रिया तेज होती है।

29

यह जीव थकनेपर मुह खोलकर नही हाँफते और गर्मी मे जीभ बाहर नही निकालते।

यह थकने पर व गर्मी मे मुह खोलकर जीभ निकालकर हाँफते है।

30

शाकाहारी रात को सोते है, दिन मे सक्रिय होते है।

प्राय: दिन मे सोते है, रात को जागते व घुमते-फिरते है।

31

यह अपने बच्चे को नही मारते और बच्चे के प्रति हिंसक नही होते है।

यह क्रूर होते है,आवश्यक्ता पडने पर अपने बच्चे को भी मारकर खा सकते है।

32

यह प्राणि दुसरे जानवरो को डराने के लिए गुर्राते नही है।

यह प्राणि दुसरे जानवरो को डराने के लिए गुर्राते है।

33

शाकाहारीयो मे रिस्पटरो की संख्या कम होती है।

इनमे रिस्पटरो की संख्या अधिक होती है, जो ब्लड मे कोलेस्ट्रोल को नियंत्रित करते है।

34

शाकाहारी कच्चा मांस नही खाते अथवा नही खा सकते।

यह किसी भी जानवर को मारकर उसका मांस कच्चा ही खाते है।

35

शाकाहारीयो के मल-मुत्र मे दुर्गंध नही होती है अथवा बहुत कम दुर्गंध होती है।

इन प्राणियो के मल-मुत्र मे दुर्गध होती ही है।

36

शाकाहारीयो के उर्जा प्राप्ति के लिए भिन्न प्रोटीन प्रयोग मे लाए जाते है।

इनके पाचन संस्थान मे पाचन के समय उर्जा प्राप्त करने के लिए अलग प्रकार के प्रोटीन उपयोग मे लाये जाते है जो शाकाहारीयो से भिन्न होते है।

37

शाकाहारीयो के पाचन संस्थान मे जो इंजाईम बनते है वह वनस्पतिजन्य पदार्थो को पचाते है।

इनके पाचन संस्थान मे जो इंजाईम बनते है वह वह मांस का ही पाचन करते है।

38

शाकाहारीयो के शरीर का तापमान मनुष्य के तापमान के आस-पास होता है।

इनका तापमान शाकाहारीयो से कम होता है क्योंकी मांसाहारीयो का बेसिक मेटॉबोलिक रेट(Basic Metabolic Rate,BMR) कम होता है।




कुछ अधिक जानकारी(SOME MORE INFORMATION) :- तालिका मे दी गई जानकारी के अनुसार मानव जाति शाकाहारी है इसके अलावा आप एक और प्रयोग कर सकते है जिसमे आप 1 महिने तक एक जगह शाकाहर रखे और दुसरी ओर मांसाहार और आप कोई भी शाकाहारी या मांसाहारी प्राणि को इसके सामने लाईये अगर प्राणि मांसाहारी है तो वह सिर्फ मांसाहार की खाएगा और यदि शाकाहारी है तो वह शाकाहार ही खाएगा और यदि आपको लगता है की आप एक मांसाहारी प्राणि है तो आप कुछ दिनो/महीने तक आप सिर्फ और सिर्फ मांस ही खाके देखे आपके शरीर पर उसका क्या दुष्प्रभाव पडेगा आप उसे देखकर समझ जाएंगे। यह जानकारी डॉ भूपसिह जो की भौतिक विज्ञान के एक रिटायर्ड एसोशिएट प्रोफेसर है भिवानी,हरियाणा से उन्होने यह जानकारी हाल ही मे प्रस्तुत की थी।

गुरुवार, 6 अगस्त 2020

टाइम कैप्सुल अथवा कालपात्र क्या होता है और इसका उपयोग किसलिए किया जाता है ( WHAT IS TIME CAPSULE AND WHAT IS IT USED FOR ? ) - UNIQUE HINDI POST


टाइम कैप्सुल अथवा कालपात्र क्या होता है और इसका उपयोग किसलिए किया जाता है ( WHAT IS TIME CAPSULE AND WHAT IS IT USED FOR ? )



टाइम कैप्सुल/कालपात्र के बारे (ABOUT TIME CAPSUL/KAALPAATRA) :-


टाइम कैप्सुल एक प्रकार की वस्तु होती है जो किसी ऐतिहासिक स्थान या महल अथवा मंदिर आदि मे डाला जाता है और इसे इतना मजबूत बनाया जाता है ताकी यह किसी भी परिस्थिति मे टिका रहे इसे धरती के नीचे दबाया जाता है और इसे सैकडो सालो के लिए धरती मे दबा दिया जाता है ताकी इसे भविष्य मे निकाला जा सके। अब आपके मन मे यह प्रश्न आ रहा होगा की इसे क्यू धरती मे दबाया जाता है वो भी सैकडो सालो के लिए और इसे ऐतिहासिक स्थान पर ही क्यू डाला जाता है यह इसलिए किया जाता है ताकी वर्तमान की बाते हमारे आनेवाली पीढियो को बताया जा सके और उन्हे अपने इतिहास के बारे मे बतया जा सके की इतिहास मे उनके यहाँ की राजनीती,अर्थव्यवस्था,उस समय क्या-क्या घटनाए हुई थी आदि की जानकारी उन्हे प्राप्त हो सके।

उदाहरण के लिए जैसे वर्तमान मे आप जी रहे हो और आपने आनेवाली पीढियो को कुछ बताना चाहते हो या उन्हे जानकारीया देना चाहते हो तो आप कैसे देंगे इसके लिए आपको उतना जीना होगा और आपकी आयु भी सीमीत है आपकी मृत्यु तय है और एक सामान्य मानव लगभग 90-100 वर्ष की आयु अधिकतर जीवित होता है तो इसके बाद आप आनेवाली पीढियो को कैसे बताओगे तो इसके आप कालपात्र अथवा टाइम कॅप्सुल का उपयोग कर सकते हो जिसमे आप वर्तमान अथवा इस समय की सारी जानकारिया,अपने बारे मे,अपने देश या वर्तमान स्थिति मे पृथ्वी पर हो रही घटनाओ,इतिहास की जानकारिया आदि बहुत से दस्तावेज या कोई वस्तु को आप इसमे डालकर इसे धरती के नीचे दवा सकते है जिसे आनेवाले 200-300 वर्षो या उससे भी अधिक वर्षो बाद जब खुदाई की जाए तो आपके इस वर्तमान समय के बारे मे भविष्य की पीढियो को पता चले और इसे अधिकतर ऐतिहासिक स्थानपर ही दबाया जाता है लगभग 200 से 300 फिट नीचे ऐसा इसलिए किया जाता है की क्योंकी ऐतिहासिक स्थानो को तोडा या उसे निष्क्रिय नही किया जाता और यदि आप इसे आजकल के किसी इमारत के नीचे दबाएंगे तो इमारत को 90-120 वर्षो मे तोडा जाता है जिसके कारण आपका कालपात्र समय से बहुत जल्द ही लोगो को मिल जाएगा और उस समय हो सकता है की लोग इसके अंदर स्थित वस्तुओ का मोल ना समझे और इसे सामान्य घटना बताए या कह दे तथा इसे फेंक दे लेकिन ऐतिहासिक स्थानो पर ऐसा नही होता है उसे एक धरोहर के रुप मे रखा जाता है और यदि कोई चाहता है की दबाया गया कालपात्र एक निश्चित समय पर निकाला जाए तो ऐसा भी हो सकता है। कालपात्र को इस प्रकार बनाया जाता है कि उसमे सडन-गलन और वर्षो-वर्षो तक कोई क्षति ना हो।

भारत मे कब-कब टाइम कॅप्सुल/कालपात्र का उपयोग किया गया है ?( HOW OFTEN IS THE TIME CAPSULE/KAALPAATRA USED IN INDIA )





कालपात्र का उपयोग पुरा विश्व करता है और खासकर इसका उपयोग देश की सरकार करती है ताकी इतिहास की सही-सही जानकारी स्थित रहे और भारत मे भी इसका उपयोग होता है। सन 15 अगस्त,1973 मे इंदिरा गांधी जी ने एक टाइम कॅप्सुल को लाल किले के नीचे दबवाया था और उन्होने इसे कालपात्र का नाम दिया था लेकिन बाद मे इसपर विवाद होने से इसे बाद मे निकाल लिया गया था जिसमे भारत की आजादी के बाद के 25 वर्षो की जानकारी रखी गई थी लेकिन इसे समय से पहले अथवा 6-8 वर्षो के अंदर ही निकाल लिया गया था और अब वर्तमान समय मे भारत मे स्थित राममंदिर के पुन:निर्माण मे जब इसका कार्य आरम्भ होगा तब इसमे 200 फिट नीचे एक कालपात्र डाला जाएगा ऐसा भारत की सरकार ने निश्चय किया है।


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